देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों पर कब लगेगा पूर्ण विराम ? हाल ही में, मणिपुर में हुए जघन्य अपराध ने मानवता को एक बार फिर से शर्मसार कर दिया है। देश में बेटियां कितनी सुरक्षित है, इस पर एक बार फिर पुनर्विचार करना होगा।

स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ समाज में कभी-कभार शोर सुनाई पड़ती है, लोगों में आक्रोश होता है, लोग विरोध प्रकट करते हैं, शासन-प्रशासन द्वारा सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया जाता है, लेकिन इसके बावजूद भी अपराध पर पूर्ण विराम नही लग पाता है। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है ? देश की बेटियों के भविष्य को लेकर सरकारें बड़ी-बड़ी बातें करती है, योजनाएं बनाती है, लेकिन बात जब महिलाओं की सुरक्षा और अस्मिता पर आती है, तो सारे दावे फेल हो जाते हैं। मणिपुर में हुई इस जघन्य अपराध ने एक बार फिर देश के सामने महिलाओं की अस्मिता और उसकी सुरक्षा पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है। स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों का सिलसिला थमने के बजाय बढ़ता ही जा रहा हैं। इसकी जबाबदेही किसकी होगी ? देश में महिलाओं और युवतियों पर कहीं एसिड अटैक होते हैं, तो कहीं हत्याएँ व बलात्कार हो रहे हैं। हमारे देश-समाज में स्त्रियों का यौन उत्पीड़न की घटना अक्सर सुनाई पडती है। लेकिन यह बिडम्बना ही कही जायेगी कि शासन-प्रशासन के साथ-साथ समाज और सामाजिक संस्थाओं ने भी इस कुकृत्य में कमी लाने में अभी तक सफल नहीं हो पायी है। देश के हर कोने से महिलाओं के साथ दुष्कर्म, यौन शोषण, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना, युवतियों की ख़रीद-फरोख्त तथा दहेज के लिये प्रताडित व जलाये जाने तक की घटनाएं आये दिनों सुनने को मिलती हैं। आपको बतादें कि थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार निर्भया कांड के बाद देश भर में फैले जनाक्रोश के बीच सरकार ने इस अपराध से निपटने का संकल्प लिया था। लेकिन अभी तक महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने में सरकारे असफल रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े भी महिलाओं के खिलाफ आपराधिक घटनाओं में वृद्धि को स्पष्ट करते हैं। इन अपराधों में घरेलू हिंसा, मारपीट, दहेज प्रताड़ना, बलात्कार, एसिड अटैक, अपहरण, तस्करी, साइबर अपराध और कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि शामिल हैं। मणिपुर में हुई दरिंदगी ने एक बार भी देश को झकझोर के रख दिया है, हर कोई स्तब्ध है। क्योंकि महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था जस का तस नजर आ रहा है। कुछ भी तो नहीं बदला, बदला है तो फिर ये, की कल कोई और थी, आज कोई और है। अब आगे कोई और ना हो, इसके लिए क्या सरकारें कोई उचित सख्त कदम उठाएगी या फिर वही रटे-रटाये चार बातें ही करेगी ? और सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है की महिलाओं के साथ ऐसा कुकृत्य उस देश में हो रहा। जहां सदियों से स्त्रियों का स्थान ऊंचा माना गया है। जो महिला समानता, स्वतंत्रता व सम्मान को संचित, सिंचित और संरक्षित करने में अग्रसर रहा है। आखिर कब तक देश की बेटियां यू ही हैवानियत की बलि चढ़ती रहेगी ?

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