जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
हरिद्वार के श्रम विभाग के अधिकारियों से मजदूरों को न्याय मिलने की बात बेमानी है, क्योंकि श्रम विभाग की सहायक श्रमायुक्त पूंजीपतियों की ढाल बनकर पैरोकारी के लिए खड़ी हो जाती है। मजदूरों को विभाग के पास भटकने भी नहीं दिया जाता है। अधिकारियों की पूंजीपतियों के साथ मिली भगत होने से आवाज उठाने वाले मजदूर को नौकरी से निकाल दिया जाता है या फिर वह घुटकर एवं शोषण के साथ अपने परिवार के पालन के लिए दबकर काम करता है। ऐसी भी अनेक कंपनियां है जोकि मजदूरों के ईएसआई, पीएफ तक का पैसा उनकी तनख्वाह से काटकर जमा तक नहीं करते। हरिद्वार में कई कंपनियां ऐसी है जिनमें यूनियन तक नहीं बनने देने में सहायक श्रमायुक्त का सहयोग है।
मजदूरों का शोषण हमेशा पूंजीपतियों ने किया है। मजदूर जीवन भर काम करके एक मकान बनाकर बच्चों का पालन पोषण कभी अच्छे से नहीं कर पाता। देश की आजादी के बाद मजदूरों के हितों की रक्षा हो, न्यूनतम वेतन से कम वेतन न मिले, इसके लिए केंद्र सरकार ने श्रम विभाग का गठन किया। लेकिन हरिद्वार का श्रम विभाग मजदूरों के हितों के बजाय कंपनियों के मालिकों की चापलूसी कर जेब भरने में लगा है। मजदूरों के हितों की आवाज दबकर रह गई है। सहायक श्रमायुक्त इस कदर कंपनियों की पैरवी में खड़ी हो जाती हैं कि यूनियनों का गठन तक नहीं होने दे रही है। कंपनियों में ठेकेदारी प्रथा इतनी ज्यादा हावी हो गई कि मजदूरों को पीएफ, ईएसआई तक काटने के बावजूद जमा नहीं हो पाते। हालात ऐसे हो गए है कि मजदूर अपना जीवन यापन सही तरीके से नहीं कर पा रहा है। उसके बच्चों का भविष्य अंधकार मय होता जा रहा है। यही हालात रहे तो इंग्लैंड जैसी क्रांति होने से कोई नहीं रोक सकता।
कंपनी में नौकरी करने वाले अजयराम का कहना है कि अपने हित को लेकर श्रम विभाग कार्यालय में कई बार गए, लेकिन कोई नहीं सुनता, उन्हें भगा तक दिया जाता है। श्रम अधिकारी कंपनी में उनकी शिकायत को बता देते हैं और कंपनी से उन्हें निकालने की धमदी दी जा रही है। श्रम विभाग से न्याय मिलना तो दूर उल्टा शोषण हो रहा है।
इंटक के वरिष्ठ पदाधिकारी राजबीर चौहान का कहना है कि मजदूरों का शोषण कतई बर्दास्त नहीं किया जाएगा। उनके साथ मिलकर आंदोलन खड़ा किया जाएगा।

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