जोगेंद्र मावी, ब्यूरो
हरिद्वार। विश्व आयुर्वेद परिषद, उत्तराखंड, हरिद्वार की ओर से त्वचा रोगों की चिकित्सा पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन करते हुए विशेषज्ञ डॉक्टरों ने विभिन्न तरह के शोधों के बारे में बताया। कार्यशाला का उद्देश्य चिकित्सकों को त्वचा रोगों से संबंधित निदान एवं चिकित्सा के विभिन्न शोधों एवं अनुभवी चिकित्सकों के ज्ञान से अवगत कराना था।
कार्यशाला का शुभारंभ धनवंतरी वंदना एवं अतिथियों के स्वागत से किया गया। कार्यशाला के प्रथम वैज्ञानिक सत्र में डॉ विनीष गुप्ता, रुद्राक्ष आयुर्वेद चिकित्सालय देहरादून के जाने-माने एवं अनुभवी चिकित्सक द्वारा विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों के निदान एवं चिकित्सा के महत्वपूर्ण पहलुओं पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि बिना लक्षणों को जाने और लक्षणों के आधार पर दोषों को पहचाने बिना त्वचा रोगों की चिकित्सा किया जाना संभव नहीं है इनके द्वारा दारूणक, बालो का गिरना, विपादिका, मस्से, विचर्चिका आदि रोगों की अनुभूत चिकित्सा को साझा किया गया। डॉ भावना मित्तल ऋषिकुल आयुर्वेद कॉलेज, हरिद्वार ने चित्रकादि लेप एवं सिद्धार्थक अगद के प्रयोग पर रोगियों पर किए गए अनुसंधानात्मक कार्य को प्रस्तुत किया और वर्तमान में जिन कारणों से त्वचा रोग बढ़ते जा रहे हैं उनके बारे में अपने अनुभव एवं विचार प्रस्तुत किए। हरिद्वार के जाने माने त्वचा रोग चिकित्सक डॉ. के. स्वरूप ने विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों जैसे कि एग्जिमा, डैंड्रफ, काले दाग, श्वित्र, लेप्रोसी और हरपीज जोस्टर, एक्नि वल्गैरिस, लाइकेन प्लेनस एवं अन्य अधिकांशत पाए जाने वाले रोगों की चिकित्सा व्यवस्था को प्रस्तुत किया एवं चिकित्सकों की विभिन्न शंकाओं का निवारण, चिकित्सा को प्रभावी बनाने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव दिए। कार्यशाला के द्वितीय वैज्ञानिक सत्र में डॉ. सपना खत्री, लेक्चरर, राजकीय आयुर्वेद कॉलेज, बीकानेर द्वारा त्वचा रोगों की चिकित्सा पर अपने अनुभवों को प्रस्तुत किया उन्होंने साधारण से लेकर गंभीर रोगों में आयुर्वेद की चिकित्सा सिद्धांतों एवं आयुर्वेद औषधियों, काष्ट औषधियों एवं रसोषधियों के प्रयोग पर विशेष प्रकाश डाला। गुरुकुल आयुर्वेद कॉलेज के प्रो. देवेश शुक्ला द्वारा रोगियों पर किए गए अपने उपचार एवं औषधि विवेचना को प्रस्तुत करते हुए वेरीकोसिटी, दद्रु आदि रोगों के सफल उपचार पर अनुभव बताए।
ऋषिकुल आयुर्वेद कॉलेज के काय चिकित्सा विभाग के प्रो. एवं विभागाध्यक्ष ओ.पी. सिंह द्वारा मंजिष्ठा, हरीतकी, त्रिफला आदि का त्वचा रोगों में प्रयोग बताया गया एवं विभिन्न जटिल त्वचा रोगों जैसे सोरायसिस, व्यंग, विचर्चिका आदि की चिकित्सा पर अपने अनुभूत योग एवं चिकित्सा व्यवस्था को चिकित्सकों के मध्य रखा। चिकित्सक डॉ आशीष मिश्रा ने अपनी ओपीडी प्रैक्टिस में मृदु विरेचन, जलौका का प्रयोग एवं एकल औषधियों के प्रयोग पर विशेष रुप से विचार रखें उन्होंने बताया कि आयुर्वेद चिकित्सा यदि त्वचा रोग का सही निदान करके की जाए तो यह तुरंत प्रभावी होती है एवं रोगी एलोपैथिक औषधियों के दुष्प्रभाव से बच सकता है और इस प्रकार आयुर्वेद द्वारा त्वचा के रोगियों की निरापद चिकित्सा की जा सकती है।
गुरुकुल आयुर्वेद कॉलेज हरिद्वार के पंचकर्म विभाग के प्रो. एवं विभागाध्यक्ष डॉ उत्तम कुमार शर्मा ने चरक संहिता, सुश्रुत संहिता आदि ग्रंथों के त्वचा रोगों से संबंधित चिकित्सा सिद्धांतों को किस प्रकार प्रयोग में लाया जाए तथा प्रचलित योग जैसे कैशोरगुलगुलु, व्याधि हरण रसायन, आरोग्यवर्धिनी वटी, महामंजिष्ठादि क्वाथ, गंधक रसायन आदि के चिकित्सा अनुभव पर प्रकाश डाला एवं पंचकर्म द्वारा त्वचा रोगों की चिकित्सा पर अपने अनुभव प्रस्तुत किए।
गुरुकुल आयुर्वेद कॉलेज के डॉक्टर मयंक भट्टकोटि ने बताया कि पुनः पुनः शोधन कर्म करने से रोगियों में वही प्रभाव उत्पन्न होता है जो कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में स्प्राइट देने पर प्राप्त किया जाता है ऐसा देखा भी गया है कि पुनः पुनः शोधन से कॉर्टिसोल का लेवल शरीर में बढ़ता है जो कि त्वचा रोगों की चिकित्सा में सहायक है। त्वचा रोगों की इस कार्यशाला में कुल 86 चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया और समापन सत्र में अपने अनुभव कार्यशाला के बारे में बताएं और उन्होंने यह आशा की कि भविष्य में भी इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जायेगे जिससे कि चिकित्सक नए-नए चिकित्सा के तरीकों को अनुभवी चिकित्सकों से प्राप्त कर सकेगे और अपनी चिकित्सा को अधिक प्रभावी एवं सफल बना सकेंगे।
कार्यक्रम के अंत में गुरुकुल आयुर्वेद कॉलेज के डॉ विपिन कुमार अरोड़ा, द्वारा सभी अतिथियों का एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया एवं यह बताया कि कार्यशाला से प्राप्त सुझावों को एवं विवेचनात्मक व्याख्यानों को एक पत्रिका के रूप में प्रकाशित किया जाएगा तथा भविष्य में भी विभिन्न व्याधियों की चिकित्सा पर इस तरह की कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। जिससे की आयुर्वेद चिकित्सक अपने अनुभव एवं विचार बता सके जिससे की निरोगी समाज की संकल्पना को साकार किया जा सके।