हमारे संवाददाता दिनांक 28 फरवरी 2025

 

रूड़की। देशभर में बिजली व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए विद्युत उपकेंद्रों की अहम भूमिका होती है। इन उपकेंद्रों पर कार्यरत कर्मी दिन-रात मेहनत कर उपभोक्ताओं को निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं। लेकिन इन कर्मियों को उनके परिश्रम का उचित पारिश्रमिक नहीं मिल रहा है। ठेकेदारी व्यवस्था के तहत कार्यरत लाइनमैन, टेक्नीशियन और राजस्व वसूली कर्मियों को न केवल बहुत कम वेतन दिया जा रहा है, बल्कि वह भी समय पर नहीं मिलता।

 

*मात्र 8 से 9 हजार रुपये वेतन, वह भी महीनों की देरी से*

 

जानकारी के अनुसार, ठेकेदार द्वारा इन कर्मियों को मात्र 8 से 9 हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाता है। इतना ही नहीं, कई-कई महीनों तक वेतन नहीं मिलने के कारण इन कर्मचारियों के सामने गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। महंगाई के इस दौर में इतने कम वेतन में परिवार का भरण-पोषण करना बेहद कठिन हो गया है।

 

कर्मचारियों का कहना है कि वे अपनी जिम्मेदारियों का पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निर्वहन कर रहे हैं, लेकिन बदले में उन्हें अपने अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। समय पर वेतन न मिलने से उन्हें कर्ज लेने तक की नौबत आ जाती है।

 

*कई बार गुहार लगाने के बावजूद समाधान नहीं*

 

कर्मचारियों ने कई बार इस समस्या को उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने का प्रयास किया, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है। ठेकेदारों को भुगतान मिलने के बावजूद कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दिया जाता।

 

*एक कर्मी ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा:*

 

“हम दिन-रात बिजली लाइन सुधारने और राजस्व वसूली का कार्य करते हैं। कई बार खराब मौसम और विपरीत परिस्थितियों में भी काम करना पड़ता है। लेकिन जब वेतन की बारी आती है, तो महीनों इंतजार करना पड़ता है। घर चलाना मुश्किल हो गया है। अगर समय पर वेतन नहीं मिलेगा, तो हम काम कैसे करेंगे?”

 

*समायोजन की मांग, स्थायी रोजगार की जरूरत*

 

कर्मचारियों ने विभाग से यह मांग की है कि उन्हें स्वयं सहायता समूहों (SHG) अथवा पीआरडी के माध्यम से समायोजित किया जाए। इससे उन्हें स्थायी रोजगार की सुरक्षा मिलेगी और वेतन समय पर मिलेगा।

 

कई कर्मचारी वर्षों से विद्युत उपकेंद्रों पर कार्य कर रहे हैं, लेकिन आज तक उनकी सेवा को स्थायी नहीं किया गया। यदि उन्हें विभाग के अंतर्गत समायोजित कर लिया जाए, तो यह समस्या स्थायी रूप से हल हो सकती है।

 

*काम अधिक, वेतन कम: ठेकेदारी व्यवस्था की खामियां*

 

ठेकेदारी व्यवस्था के तहत काम करने वाले कर्मचारियों को न तो किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा मिलती है और न ही भविष्य की कोई गारंटी।

1. कम वेतन: महंगाई बढ़ रही है, लेकिन इन कर्मचारियों का वेतन बेहद कम है।

2. वेतन में देरी: कई महीनों तक वेतन नहीं मिलने से कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है।

3. निश्चित भविष्य नहीं: स्थायी नौकरी न होने के कारण इन कर्मचारियों को किसी भी समय हटाया जा सकता है।

4. जोखिम भरा कार्य: बिजली आपूर्ति से संबंधित कार्य जोखिम भरे होते हैं, लेकिन इन कर्मियों को बीमा और अन्य सुरक्षा लाभ नहीं मिलते।

 

*जल्द समाधान न हुआ, तो होगा विरोध प्रदर्शन*

 

कर्मचारियों का कहना है कि यदि जल्द ही उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए बाध्य होंगे।

 

उन्होंने विभाग और प्रशासन से अपील की है कि उनकी समस्याओं का संज्ञान लिया जाए और उन्हें समय पर वेतन देने के लिए ठेकेदारों को बाध्य किया जाए। साथ ही, उनकी समायोजन की मांग को भी गंभीरता से लिया जाए, ताकि उन्हें स्थायी रोजगार मिल सके।

 

इस मुद्दे पर कई विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को ठेकेदारी व्यवस्था पर पुनर्विचार करना चाहिए। विद्युत उपकेंद्रों पर कार्यरत कर्मियों की समस्याओं का समाधान केवल ठेकेदारों को निर्देश देने से नहीं होगा, बल्कि उनके रोजगार को स्थायित्व देने के लिए ठोस नीति बनानी होगी।

 

विशेषज्ञों के अनुसार:

• बिजली विभाग में नियमित भर्ती होनी चाहिए, ताकि अनुभवी कर्मियों को स्थायी रोजगार मिल सके।

• कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन गारंटी के तहत लाया जाए, ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें।

• ठेकेदारों की जवाबदेही तय की जाए, ताकि वे समय पर वेतन देने के लिए बाध्य हों।

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