December 25, 2024 दीपा माहेश्वरी

हरिद्वार नगर निकाय चुनाव में मेयर पद के लिए अप्रसिद्ध और अप्रासंगिक दावेदारों का उभरना आजकल एक आम बात हो गई है। ऐसे दावेदार, जिनका राजनीति में कोई ठोस इतिहास नहीं है और जिन्हें जनता जानती तक नहीं, सोशल मीडिया के जरिए खुद को दावेदार के रूप में प्रचारित कर रहे हैं। यह न केवल हास्यास्पद है, बल्कि जनता की समझदारी को कम आंकने जैसा भी है।

लोकतंत्र में चुनाव लड़ने का अधिकार हर नागरिक के पास है, लेकिन यह अधिकार तभी सार्थक होता है जब इसे गंभीरता और जनता के प्रति जिम्मेदारी के साथ निभाया जाए। ऐसे अप्रसिद्ध दावेदार, जिनके पास न तो अनुभव है और न ही जनसमर्थन, अक्सर पार्टी के पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं का महत्व कम कर देते हैं। इससे पार्टी के भीतर असंतोष और भ्रम की स्थिति पैदा होती है।

यह देखा गया है कि कई दावेदार केवल पार्टी के प्रभावशाली नेताओं की कृपा से टिकट पाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग जनता की समस्याओं और उनकी अपेक्षाओं से दूर होते हैं। उनकी दावेदारी केवल प्रचार और नाम तक सीमित रहती है, जो अंततः पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित होती है।

इस प्रकार के थोपे गए उम्मीदवार लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करते हैं। न केवल जनता, बल्कि पार्टी भी ऐसे उम्मीदवारों को लेकर असमंजस में रहती है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे दावेदारी के मानदंडों को स्पष्ट करें और योग्य, अनुभवी तथा जनता के बीच लोकप्रिय उम्मीदवारों को प्राथमिकता दें।

ऐसे समय में जब जनता परिवर्तन की अपेक्षा रखती है, अप्रसिद्ध और अप्रासंगिक दावेदार लोकतंत्र की भावना और राजनीतिक दलों की छवि को कमजोर करने का कार्य कर रहे हैं। पार्टियों और जनता को मिलकर इस प्रवृत्ति को चुनौती देनी होगी ताकि लोकतंत्र और राजनीति की गरिमा बनी रहे।

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